क्यों कहा जाता है रूपकुंड को रहस्यमयी एवं कंकालों वाली झील।
उत्तराखंड को देवताओं का वास माना जाता है इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। यहां पर दंत कथाओं जागरों में देवताओं के जाने अनजाने कितने रहस्य छुपे हुए हैं। उन्हीं में एक है रूपकुंड जिसको माता नंदा का कुंड भी कहा जाता है। इसी कुंड मेंं ना जाने कितनेे रहस्य छुपे हुए हैं जिनका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है।
यह कुंड उत्तराखंड के चमोली जिले के त्रिशूल पर्वत के पास देवाल क्षेत्र में स्थित है। यहां तक का रास्ता कठिनाइयों से भरा हुआ है ।
रूपकुंड की उत्पत्ति की कहानी:
रूपकुंड की उत्पत्ति के बारे में यहां के जागरों तथा लोक गीतों से पता चलता है कि जब मां नंदा भगवान शंकर जी से विवाह करके कैलाश पर्वत को जा रही थी तो मां नंदा को बड़ी प्यास लगी और मां नंदा ने अपनी प्यास बुझाने के लिए भगवान शंकर से कहा तो उन्होंने अपना त्रिशूल निकाला तथा धरती पर मारा जिससे यहां पर पानी आ गया और एक कुंड का निर्माण हो गया। फिर इस पानी से मां नंदा ने अपनी प्यास बुझायी तथा अपना श्रृंगार किया हुआ रूप इस कुंड में देखा तो मां अपना ही रूप कुंड में देखकर मोहित हो गई तभी से इस कुंड को रूपकुंड कहते हैं, इसलिए मां को यह कुंड बहुत प्रिय है।
नंदा राजजात यात्रा:-
उत्तराखंड में प्रत्येक 12 साल में एशिया की सबसे बड़ी राजजात यात्रा होती है। इस यात्रा में रूपकुंड पर सभी श्रद्धालु स्नान तथा विश्राम करके आगे की यात्रा करते हैं।
क्यों कहा जाता है रूपकुंड को कंकालो वाली झील:-
रूपकुंड को कंकालो वाली झील भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर 500 से अधिक नर कंकाल प्राप्त हुए हैं इन सब के बारे में अलग-अलग धारणाएं बनी हुए हैं जो निम्न प्रकार के रहस्य को दर्शाती है।
रहस्य:-
- रूपकुंड के बारे मैं एक लोककथा यह है कि मां नंदा के दोष के कारण कन्नौज में भयंकर अकाल पड़ गया इससे भयभीत होकर राजा यशवर्धन ने मां नंदा की मनौती की और राजा अपने सदल बल सहित प्रस्थान किया। लेकिन गढ़वाल यात्रा के नियमों का पालन नहीं किया तथा अपनी गर्भवती पत्नी तथा दास दसियों सहित रूपकुंड स्थान परपहुंचे जिससे मां नाराज हो गई और उसी समय भयंकर बर्फीला तूफान आ गया और बारिश हो गई जिस से यहां सब यहीं पर दबकर मर गए।
- लोगों का यह मानना है कि 7 दशकों बाद भी उन्हीं लोगों के कंकाल यहां पर मिल रहे हैं क्योंकि रिसर्च में बच्चे जवान बूढ़े तथा औरतों के कंकाल भी प्राप्त हुए हैं जो कि इस यात्रा में सम्मिलित थे।
- इन कंकालों को सर्वप्रथम 1942 में एक फॉरेस्ट गार्ड ने देखा था लेकिन उस समय यह कहा जाने लगा था कि यह कंकाल जापानी सैनिकों के हैं जो द्वितीय विश्वयुद्ध से लौट रहे थे लेकिन बाद में कंकालों पर रिसर्च से पता चला कि यह कंकाल लगभग 1200 वर्ष पुराने हैं तथा यह उन मनुष्य के हैं जिनकी लंबाई लगभग 10 फीट रही होगी तथा जो कि डेढ़ फीट लम्बे जूते या सैंडल पहनते होंगे क्योंकि यहां पर डेढ़ फीट लंबी चमड़े का सैंडल भी प्राप्त हुआ है।
- तीसरी धारणा यह मानी जाती है कि कश्मीर के जनरल जोरावर जो 1941 में तिब्बत युद्ध से अपने सैनिकों के साथ लौट रहे थेऔर क्योंकि यह स्थान चारों ओर से पहाड़ियों से गिरा है तो बर्फीला तूफान आने से उसमें दब कर मर गए होंगे लेकिन वहां पर किसी भी सैनिकों के हथियार प्राप्त नहीं हुए थे।
- चौथी सबसे बड़ी रहस्य की बात यह है कि कार्बन डेटिंग में इन कंकालों को१२०० साल पुराना तथा अलग-अलग समुदाय एवं समय का बताया गया है क्योंकि आज भी इन कंकालों पर मांस तथा बाल पाए गए हैं तथा इनकी लंबाई 10 फीट मनुष्य की है जो सबको हैरान करने वाली है।
ट्रेकिंग और घूमने के लिए:-
उत्तराखंड बहुत ही खूबसूरत प्रदेश है जहां घूमने तथा रोमांचित ट्रेकिंग के लिए कई स्थान हैं उन्हीं में एक है रूपकुंड जब भी कोई एडवेंचर से भरपूर यात्रा करना चाहता है तो उसको रूपकुंड जरूर आना चाहिए यह स्थान ऋषिकेश से 325 किलोमीटर दूरी पर स्थित है तथा समुद्र तल से 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यहां उत्तराखंड का राजकीय पुष्प ब्रहम कमल तथा नाग की तरह दिखने वाला पौधा भी प्राप्त होता है। यहां बर्फीली घाटियों छोटे-छोटे बुग्याल हैं। यहां आकर रूपकुंड की सुंदरता आपको मोह लेगी ,लेकिन आप जब भी यहां आए तो गर्म कपड़े और रेनकोट जरूर साथ लाए।यहां आने का सही समय मई जून तथा बरसात के बाद का मौसम सबसे अच्छा है।
उत्तराखंड में कई खूबसूरत और रहस्यमयी जगह ऐसी हैं जो अलग-अलग खूबियों से भरी हुई है उनके बारे में आपको मैं अपने हर ब्लाक में जानकारी देती रहूंगी । अगर आप किसी भी क्षेत्र के बारे में जानना है तो कमेंट जरूर करें और साथ ही शेयर भी जिससे यह जानकारी कई लोगों तक आसानी से पहुंचे सके ।और उत्तराखंड के खूबसूरत जगह को देखने आए और पर्यटन को बढ़ावा मिल सके जिससे रोजगार के साधन विकसित हो।
Sandhya K Jamloki.
Good
ReplyDeleteVery nice
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