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क्यों कहा जाता है रूपकुंड को रहस्यमय‌ी एवं कंकालों वाली झील।

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उत्तराखंड को देवताओं का वास  माना जाता है इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। यहां पर दंत कथाओं जागरों में देवताओं के जाने अनजाने कितने रहस्य छुपे हुए हैं। उन्हीं में एक है रूपकुंड जिसको माता नंदा का कुंड भी कहा जाता है। इसी कुंड मेंं ना जाने कितनेे रहस्य छुपे हुए हैं जिनका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है।                 यह कुंड उत्तराखंड के चमोली जिले के त्रिशूल पर्वत के पास देवाल क्षेत्र में स्थित है। यहां तक का रास्ता कठिनाइयों से भरा हुआ है । रूपकुंड की उत्पत्ति की कहानी:                                         रूपकुंड की उत्पत्ति के बारे में यहां के जागरों तथा लोक गीतों से पता चलता है कि जब मां नंदा भगवान शंकर जी से विवाह करके कैलाश पर्वत को जा रही थी तो मां नंदा को बड़ी प्यास लगी और मां नंदा ने अपनी प्यास बुझाने के लिए भगवान शंकर से कहा तो उन्होंने अपना त्रिशूल निकाला तथा धरती पर मारा जिससे यहां पर पानी आ गया और एक कुंड का निर्माण हो गया। ...

जोशीमठ नरसिंह देवता // JOSHIMATH NARSINGH DEVTA

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आज मैं उत्तराखंड के एक ऐसे रहस्यमयी मंदिर की बात करने जा रही हूं जो चमोली के जोशीमठ शहर में स्थित है ।इसको ज्योतिर मठ या शंकराचार्य मठ भी कहा जाता है  । भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी जिसमें से एक प्रमुख मठ है। यह स्थान भगवान बद्रीनाथ को अति प्रिय है। तथा शीतकालीन बद्री नारायण भगवान की मूर्ति यही दर्शन के लिए रखी जाती है। यह नरसिंह भगवान का मंदिर है। जो विष्णु भगवान के चौथे अवतार थे। सप्त बद्री में से एक होने के कारण इस मंदिर को नरसिंह बद्री तथा नरसिम्हा बद्री भी कहा जाता है ।इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि यह मंदिर संत बद्री का घर हुआ करता था । तथा  यहा संतों का काफी  आना जाना रहता था। यह मंदिर 1200वर्ष पुराना है ।कहां जाता है की शंकराचार्य ने स्वयं इस स्थान पर भगवान नरसिंह की शालिग्राम मूर्ति की स्थापित की थी। ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी जिस दिव्य शालिग्राम कि यहां पर पूजा करते थे उसमें अचानक से भगवान नरसिंह की मूर्ति उभर कर आई उसी क्षण उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन हुए तथा भगवान विष्णु ने उन्हें ...

ब्रह्मा कपाल आखिरी पिंड दान स्थान//A last pinddaan place brahm kapal

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ब्रह्म कपाल उत्तराखंड के चमोली जिले के बद्रीनाथ धाम में स्थित है यह बद्रीनाथ मंदिर  से लगभग 500 मीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी तट पर स्थित है इस स्थान को  पित्रमोक्ष स्थान भी कहा जाता है। यहां के पुरोहितों द्वारा बताया जाता है कि भगवान शंकर के रूद्र अवतार ने ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया था जिससे भगवान को ब्रहम हत्या लग गई थी इसी के निवारण के लिए शंकर भगवान ने यहां पर मोक्ष की कामना से पिंडदान किया था तथा ब्रह्मा का आशीर्वाद प्राप्त किया था। तभी से यह स्थान ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है।  अलकनंदा नदी के तट पर एक बड़ी काली शिला कपाल के समान है। इसी स्थान पर लोग अपने पूर्वजों तथा पितरों की मोक्ष की कामना से आखरी पिंड दान करते हैं। क्योंकि पहला पिंडदान गया में रेत का किया जाता है जहां पर भगवान के पैर हैं। दूसरा पिंड दान काशी मे कुश से किया जाता है। जो भगवान का नाभि भाग है। कथा आखरी पिंडदान बद्रीनाथ के ब्रह्म कपाल में बद्रीनाथ भगवान के झूठे भोग से किया जाता है। लोग यहां पर अपने सात पीढ़ियों पहले तक का पिंड दान करते हैं तथा उनकी मोक्ष की कामना करते हैं। यहां पर एक हवन...

बद्रीनाथ जहाँ नहीं बजाया जाता है शंख//Badrinath

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।।।। उत्तराखंड के रहस्य में आज मै आपको बद्रीनाथ धाम मंदिर के रहस्य के बारे में बताऊंगी कि इस मंदिर मे शंख क्यों नहीं बजाया जाता है। बद्रीनाथ बद्रीनाथ धाम भारत के चार धामो में से एक है । यहां पर भगवान नारायण जिसे बद्री नारायण भी कहा जाता है का मंदिर है । यह उत्तराखंड के चार धामों में से सबसे प्रसिद्ध धाम है । यह मंदिर ऋषिकेश से २९४ किमी दूर , चमोली जिले के माना गांव के निकट अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है । यह उत्तराखंड के पांच बद्री में से एक है। हिन्दू धर्म में इस स्थान का विशेष महत्व है । माना जाता है कि सतयुग में यहां पर सभी लोगो को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन होते थे ,और त्रेता युग में यहां देवताओं तथा साधुओं को दर्शन होते थे, लेकिन द्वापर में जब भगवान विष्णु "कृष्ण" रूप में जन्म लेने वाले थे तब भगवान विष्णु ने कहा कि अब से इस धाम में केवल मनुष्यो को ही यहां उनके विग्रह रूप के दर्शन होते हैं ।इस धाम को दूसरा वैकुंठ भी माना जाता है ।  रहस्य लेकिन इस मंदिर की रहस्यम बात तो यह है कि यहां पर कभी भी शंख नहीं बजाया जाता है जबकि हिन्दू धर्म में शंख का बड़ा महत्व है और भगवान...

सरस्वती नदी का उद्गम स्थान //SARASWATI RIVER POINT OF ORIGIN

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प्रकृति रहस्यों का घर है। इसकी गोद में न जाने कितने रहस्य छुपेहुए हैं। ऐसे एक रहस्य की बात कर रही हूं। वह एक रहस्यमयी नदी है जिसका नाम है सरस्वती। यह भारत तथा उत्तराखंड की सबसे पवित्र नदी मनी जाती है।  *उद्गम स्थल* सरस्वती नदी का उद्गम स्थान चमोली के देवताल से होता है । यह माना जाता है कि श्राप कर कारण ये नदी केशव प्रयाग में विलुप्त हो जाती है यह स्थान बद्रीनाथ धाम के समीप है। केशव प्रयाग में यह नदी लुप्त होते दिखाई दे रही है । *विलुप्त होने का कारण* पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस नदी के समीप वेदव्यास जी ने महाभारत , वेद , तथा पुराणों की रचना की तथा लिखने का कार्य श्री गणेश भगवान को सौंप दिया गया ।  जब गणेश भगवान महाभारत लिखने लगे तो उन्हें तो उन्हें व्यास जी की कोई बात सुनाई नहीं दी क्योंकि सरस्वती नदी का वेग तथा आवाज़ सभी नदियों में सबसे तेज़ है , तब व्यास ने सरस्वती नदी से आग्रह किया कि वे अपनी वेग की ध्वनि कम करें लेकिन नदी ने कहा कि वह यह करने में असमर्थ है , जिस कारण व्यास ने उन्हें विलुप्त होने का श्राप दे दिया। लेकिन सरस्वती के आग्रह पर व्यास ने कहा कि तुम धरती के...